भूमि-विवाद का शहर में प्रचलन...

 ​कोर्ट के आदेश पर एफआईआर फिर भी पुलिस कार्रवाई से पीछे 
 जोधपुर में गंभीर भूमि विवाद, पुलिस पर मिलीभगत के आरोप


कोर्ट के आदेश पर एफआईआर फिर भी पुलिस कार्रवाई से पीछे 
 जोधपुर में गंभीर भूमि विवाद, पुलिस पर मिलीभगत के आरोप
 आज हम बात कर रहे हैं जोधपुर के एक सनसनीखेज़ भूमि विवाद की, जिसमें पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है। पीड़ित पक्ष यानी परिवादी का आरोप है कि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला दर्ज होने के बाद भी स्थानीय पुलिस आरोपियों को गिरफ़्तार नहीं कर रही है। इस मामले में पुलिस और भू-माफियाओं के बीच "सामंजस्य और साठगांठ" के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।"
यह मामला जोधपुर शहर पश्चिम क्षेत्र के कुड़ी भगतासनी पुलिस थाना से जुड़ा है। (फ़ाइल में दिख रही FIR की इमेज या संदर्भ दें)। परिवादी विरेंद्र कुमार ने भू-माफियाओं और अन्य 20-25 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एक गंभीर शिकायत दर्ज कराई है। 
 यह रिपोर्ट सीधे कोर्ट के आदेश पर दर्ज की गई, क्योंकि परिवादी के अनुसार, स्थानीय पुलिस ने पहले उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।"
 ​परिवादी के आरोप (FIR के आधार पर) ​"दर्ज FIR के अनुसार, यह विवाद कस्बा झालामंड बासनी चौहाना  स्थित एक प्लॉट संख्या 53 व 75 के स्वामित्व से जुड़ा है। परिवादी का आरोप है कि आरोपियों ने मिलकर जाल साज़ी की और ज़मीन के दस्तावेज़ों में हेर फेर किया।
 जब उन्होंने विरोध किया, तो उन्हें न सिर्फ़ धमकाया गया बल्कि मारपीट और जान से मारने की धमकियां भी दी गईं। ​पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल.....
FIR में आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की गंभीर धाराएँ लगाई गई हैं। (उदाहरण के लिए धारा 303(2) (गंभीर चोट पहुंचाना), 329(3) (हमला), 318(4) (बंधक बनाना), 189(2) (अवैध सभा) और 338 (आपराधिक बल का प्रयोग) आदि)।"
​बावजूद इसके, परिवादी का स्पष्ट आरोप है कि FIR दर्ज होने के इतने दिन बाद भी, पुलिस ने न तो मुख्य आरोपियों को गिरफ़्तार किया है और न ही मामले में कोई प्रभावी जाँच की है।"
​गंभीर दावा - मिलीभगत
​परिवादी का दावा है कि पुलिस की यह निष्क्रियता केवल लापरवाही नहीं है, बल्कि यह आरोपियों और पुलिस अधिकारियों के बीच स्पष्ट मिलीभगत का नतीजा है। परिवादी के अनुसार, पुलिस की सांठगांठ के कारण ही भू-माफिया खुलेआम घूम रहे हैं, और उन्हें लगातार धमकियाँ मिल रही हैं।"
​इस पूरे प्रकरण में, जहाँ एक ओर न्यायपालिका ने पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए FIR दर्ज करने का आदेश दिया, वहीं दूसरी ओर कार्यपालिका यानी पुलिस पर आरोप है कि वह जानबूझकर मामले को दबाने की कोशिश कर रही है।"
​इस गंभीर मामले में, अब यह देखना होगा कि उच्च पुलिस अधिकारी इस मामले का संज्ञान कब लेते हैं और क्या पीड़ित को कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस की कार्रवाई के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। 

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Author
Rajendra Harsh
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